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जबकि पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी वृद्धि में मंदी, रुपये में गिरावट, लगातार मुद्रास्फीति, खपत में कमी, बढ़ता व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर चिंताएं व्यक्त की जा रही थी. सरकार के लिए विनिर्माण वृद्धि, कृषि में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, किसानों का समर्थन और कृषि उत्पादन में असंतुलन को दूर करना, दालों और खाद्य तेलों के लिए विदेशों पर निर्भरता को कम करना, मध्यम आय वाले करदाताओं को कर में राहत देना और साथ ही मुद्रास्फीति संबंधी चिताओं को दूर करना वास्तविक चुनौती थी। बजट 2025-26 ने इन सभी चिंताओं को संतुलित करने और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की कोशिश की है।
लेकिन, यह भी सही है कि तमाम बाधाओं के बावजूद, देश की राजकोषीय सेहत काफी अच्छी स्थिति में थी। कम राजकोषीय घाटा, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के करों में उगल, भारी मात्रा में एनआरआई प्रेषण और चालू वित्त वर्ष में निवेश की घोषणाओं में वृद्धि वित्त मंत्री के काम को आसान बना रही थी। इससे वित्त मंत्री को छोटे करदाताओं को बड़ी राहत देने तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और विनिर्माण के लिए अधिक प्रावधान करने के अलावा बड़े पूंजीगत व्यय जारी रखने की गुंजाइश मिल सकी।
मध्यम वर्ग को बड़ी राहत-
हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार आयकर के मामले में मध्यम वर्ग को कुछ राहत पहले से भी दे रही थी, लेकिन कहानी यह रही है कि हर बजट में मध्यम वर्ग को बहुत कम लाभमिलता है। लेकिन मोदी 3.0 में अपने पहले पूर्ण बजट में, वित्त मंत्री ने मध्यम वर्ग को, 12 लाख रुपये की वार्षिक आय या एक लाख रुपये की मासिक आय तक किसी भी कर का भुगतान करने से मुक्त करके वास्तव में बड़ी राहत दी है। वेतनभोगी वर्ग के मामले में, यह छूट 12.75 लाख है, क्योंकि उन्हें अपनी आय से 75,000 रुपये की मानक कटौती का लाभ भी मिलता है। हालांकि, 12 लाख रुपये से अधिक आय वाले लोग उतने भाग्यशाली नहीं है, हालाकि, एक लाख रुपये मासिक आय बाले लोगों जितनी बड़ी तो नहीं, लेकिन उन्हें भी कुछ राहत जरूर मिली है।
मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा-
आत्मनिर्भर भारत नीति की शुरुआत के बाद से, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। बजट 2025-26 में विनिर्माण को बढ़ावा देने का विशेष प्रावधान किया गया है. विशेष रूप से स्वच्छ प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी और मोटर पवन ऊर्जा उपकरण और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण शामिल हैं।
एमएसएमई विनिर्माण मिशन एमएसएमई के लिए बढ़ी हुई आऋण गारंटी, उनकी कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए, सूक्ष्म उद्यमों के लिए 5 लाख रुपये की सीमा के साथ क्रेडिट कार्ड, पहले की सूची से आगे पीएलआई योजना का विस्तार, और देश को चीनी प्रभुत्व से बचाने के लिए विनिर्माण में सुधार के लिए कई अन्य उपाय इस बजट की महत्वपूर्ण पहल है। सरकार का वर्तमान प्रयास भारत को विनिर्माण केंद्र बनाने के लक्ष्य की दिशा में एक वृहत कार्य करेगा, और वह भी एमएसएमई क्षेत्र के माध्यम से।
इस बजट में लिथियम बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मोटर और अन्य स्वच्छ तकनीक विनिर्माण को बढ़ावा देकर स्वच्छ तकनीक मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया गया है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आयातित बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मोटर और सौर सेल के लिए विदेशों पर हमारी अत्यधिक निर्भरता के कारण हमारा आयात बिल बढ़ रहो है और भविष्य में आयातित घटकों पर हमारी निर्भरता के कारण देश का शोषण भी हो सकता है। इसलिए, यह आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दे रहा है और देश को विदेशियों, विशेष रूप से चीन द्वारा शोषण से बचा रहा है। एमएसएमई के लिए राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन, स्टार्ट-अप के लिए विभिन्न योजनाएं भारत को दुनिया का खिलौना हव बनाने के लिए खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन, बजट की अन्य मुख्य विशेषताएं हैं।
एमएसएमई को प्रोत्साहित करना-
बजट सभी स्तरों पर एमएसएमई, स्टार्ट-अप और निर्यात उन्मुख इकाइयों को बढ़ा हुआा ऋण गारंटी कवर देकर एमएसएमई क्षेत्र को नया बढ़ावा देता है. श्रम गहन क्षेत्रों विशेष रूप से चमड़ा और जूते क्षेत्र खिलौने, खाद्य प्रसंस्करण और अन्य के लिए उपाय विशेष रूप से विनिर्माण मिशन, छोटे मायन वह सभी प्रकार जोसों को शामिल करते हुए मेक इन इंसिया को आगे बढ़ाने के लिए शुरू किया गया है।
कृषि को बढ़ावा-
बिहार के एक अद्भुत पौष्टिक कृषि उत्पाद मखाना को बढ़ावा देने की दिशा में मखाना बोर्ड का गठन अनुकरणीय कदम है और इससे अन्य क्षेत्रों के कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं। हाल ही में, सरकार ने हल्दी बोर्ड का गठन भी किया है, जिसकी मांग स्वदेशी जागरण मंच यूपीए के दिनों से ही कर रहा था, ताकि तेलंगाना के हल्दी किसानों की चिंताओं को दूर किया जा सके। दालों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम, कपास मिशन और कृषि के लिए कई अन्य योजनाएं सराहनीय हैं। कई अन्य उपायों के अलावा किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाना भी संतोषजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों से आबादी को स्थानांतरित करने की अनिवार्यता के बयानबाजी के विपरीत, शायद निर्मला सीतारमण द्वारा बजट भाषण में यह कहना अच्छा लगा कि सरकार का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त अवसर पैदा करना है ताकि पलायन एक विकल्प ही हो, लेकिन अनिवार्यता नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में आय के बढ़ते अवसरों के साथ, सरकार के प्रयासों की बदौलत यह एक संभावना हो सकती है।
ग्रामीण और शहरी भारत के बीच अंतर को पाटना-
देश के सामने ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में आय की असमानता एक बड़ी चुनौती है। आर्थिक सर्वेक्षण में यह रिपोर्ट आने पर संतोष हुआ कि ग्रामीण और शहरी आबादी में एमपीसीई (मासिक प्रति व्यक्ति व्यय) के बीच का अंतर 84 प्रतिशत से घटकर 70 प्रतिशत हो गया है। यह ग्रामीण सड़कों, आवास, खाना पकाने के स्वच्छ इंधन, पानी, बिजली, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और कई अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर बढ़ते खर्च के कारण संभव हुआ है। इस प्रक्रिया को और तेज करने की आवश्यकता है।
बजट 2025-26 ग्रामीण आय को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करता है। किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाने के अलावा, कृषि को बढ़ावा देना, खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देना और ग्रामीण आय बढ़ाने के कई अन्य प्रयास ग्रामीण-शहरी असमानताओं को कम करने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं।
स्वास्थ्य परिदृश्य में सुखद बदलावः सरकार ले रही है अधिक जिम्मेदारी-
केंद्रीय बजट 2025-26 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, आयुष और स्वास्थ्य अनुसंधान पर 103280 करोड़ रुपये का व्यय आवंटित किया गया है। यदि हम पिछले 11 वर्षों पर नजर डालें, तो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, आयुष और स्वास्थ्य अनुसंधान पर व्यय में 8.3 गुना वृद्धि हुई है, जो 2014-15 में 12482 करोड़ रुपये से बढ़कर बजट 2025-26 में 103280 करोड़ रुपये हो गया है। इस अवधि के दौरान केंद्रीय बजट का आकार मुश्किल से 2.8 गुना ही बढ़ा है।
दस साल पहले, स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.0 प्रतिशत ही था। उल्लेखनीय है कि 1990-91 में स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक व्यय (जिसमें चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, जल आपूर्ति और स्वच्छता, पोषण, बाल और विकलांग कल्याण शामिल होते हैं) सकल घरेलू उत्पाद का 2.36 प्रतिशत था। वैसे तो भारत में सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थान कभी भी उत्कृष्ट नहीं थे, लेकिन एलपीजी से पहले के दौर में भी इन सुविधाओं को सरकारी नीति-निर्माण के केंद्र में रखा जाता रहा। एलपीजी नीतियों के तहत निजीकरण के आगमन के साथ ही लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए बाजार की ताकतों के भरोसे छोड़ दिया गया। 2014-15 से पहले जी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं कम होती जा रही थीं, उनमें काफी सुधार होना प्रारंभ हुआ है, जिससे लोगों द्वारा जेब से किए जाने वाले खर्च को कम करना संभव हो पाया है। हम देखते हैं कि 2004 में सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य व्यय 4.2 प्रतिशत था और इसमें से 2.59 प्रतिशत निजी जेब से किए जाने वाले. खर्च का था। जैसा कि 2015 की भारत सरकार की रिपोर्ट में कहा केंद्रीय बजट 2025 26 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, आयुष और स्वास्थ्य अनुसंधान पर 103280 करोड़ रुपये का व्यय आवंटित किया गया है। यदि हम पिछले 11 वर्षों पर गया है, ‘स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण व्यय भयावह रूप से बढ़ रहा है और अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह गरीबी में प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है। स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण परिवार की आय पर पड़ने वाला असर आय में वृद्धि के लाभ और गरीबी को कम करने के उद्देश्य से सरकार की हर योजना को बेअसर कर सकता है।”
पिछले एक दशक में सरकार द्वारा सकारात्मक और महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के कारण, गैर-संचारी रोगों के बढ़ते मामलों के बावजूद, जेब से होने वाले खर्च में लगातार कमी आ रही है. जिससे आम जनता और खास तौर पर गरीबों को राहत मिली है।
2013-14 तक जेब से होने वाला खर्च करीब 2.5 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बना रहा। 2004-05 में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में जेब से होने वाला खर्च 2.58 था, जो 2013-14 में भी 2.43 पर बना रहा, जबकि तत्कालीन सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के बारे में बड़े-बड़े दावे किए थे। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि के साथ, हमने निजी जेब से होने वाले स्वास्थ्य व्यय में धीरे-धीरे गिरावट देखी है। हालांकि, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में जेब से किये जाने वाले व्यय में अधिक तेजी से गिरावट 2015-16 के बाद देखी गई. क्योंकि यह 2015-16 में 2.32.2019-20 में 154, 20-21 में 1.66 और 21-22 में 155 थी।
भारत के मामले में, आयुष्मान भारत की शुरुआत ने निजी जेब से स्वास्थ्य खर्च कम करने में काफी मदद की है। आयुष्मान भारत योजना में दो खंड शामिल हैं- एक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के उन्नयन और निर्माण से संबंधित है जिसे प्रधानमंत्री-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) के रूप में जाना जाता है और दूसरा स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने की दिशा में है जिसे आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) के रूप में जाना जाता है। दिसंबर 2024 तक, कुल 1.75 लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिर (एएएम) या तो स्थापित किए गए थे या मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और उप-स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) से उन्नत किए गए।
गिग वर्कर्स
इस बजट में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ काम करने वाले गिग वर्कर्स को मान्यता देने, उन्हें ई-श्रम प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत करने और उन्हें स्वास्थ्य कबर का लाभ देने के अलावा श्रम गहन क्षेत्रों को प्रोत्साहन देने का काम किया गया है। लंबे समय से भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मब गिग वर्कर्स के लिए कल्याणकारी उपायों की मांग कर रहे थे।